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9वीं शताब्दी में क्षत्रिय एक सामाजिक वर्ण था और गुर्जर एक जनजाति, जो समय के साथ राजपूत पहचान में समाहित हो सकती थी। |
मिहिर भोज (Mihir Bhoj), जिन्हें गुर्जर-प्रतिहार वंश (Gurjara-Pratihara Dynasty) के एक महान सम्राट के रूप में जाना जाता है, 9वीं शताब्दी (लगभग 836-885 ई.) में भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण शासक थे। उनकी वीरता, साम्राज्य विस्तार, और प्रशासनिक कुशलता ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया। हालांकि, उनकी जातिगत पहचान—राजपूत (Rajput) या गुर्जर (Gujjar)—आज एक ज्वलंत विवाद का विषय बनी हुई है। यह लेख मिहिर भोज की जाति (Mihir Bhoj Caste), ऐतिहासिक तथ्यों, और आधुनिक राजनीतिक-सामाजिक विवादों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मिहिर भोज का योगदान
मिहिर भोज, जिन्हें महेंद्रपाल या विष्णुधर के नाम से भी जाना जाता है, गुर्जर-प्रतिहार वंश के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में उत्तर भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, जो वर्तमान गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश तक फैला था। उनकी राजधानी कन्नौज (Kannauj) थी, जो उस समय भारत का सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र थी। मिहिर भोज ने अरब आक्रमणों (Arab Invasions) को रोकने और राष्ट्रकूटों (Rashtrakutas) तथा पलास (Palas) के खिलाफ युद्धों में अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। उनकी उपलब्धियों को बराह मिहिर भोज शिलालेख (Barah Mihir Bhoj Inscription) और ग्वालियर शिलालेख (Gwalior Inscription) जैसे स्रोतों में दर्ज किया गया है, जो उनकी क्षत्रिय (Kshatriya) पहचान और शासन की महानता को दर्शाते हैं।
मिहिर भोज ने न केवल सैन्य विजय प्राप्त की, बल्कि कला, संस्कृति, और धर्म को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने वैष्णव धर्म (Vaishnavism) का समर्थन किया और मंदिरों के निर्माण में योगदान दिया। उनकी ये उपलब्धियां उन्हें भारतीय इतिहास (Indian History) में एक महान शासक बनाती हैं, लेकिन उनकी जातिगत पहचान को लेकर आज भी बहस जारी है।
मिहिर भोज: राजपूत या गुर्जर?
मिहिर भोज की जाति को लेकर दो प्रमुख समुदाय—राजपूत और गुर्जर—उनके वंशज होने का दावा करते हैं। यह विवाद ऐतिहासिक स्रोतों की अस्पष्टता और आधुनिक जाति आधारित राजनीति (Caste-Based Politics) के कारण और जटिल हो गया है। आइए, दोनों पक्षों के दावों और ऐतिहासिक तथ्यों का विश्लेषण करें।
1. राजपूत दावा
राजपूत समुदाय का तर्क है कि मिहिर भोज क्षत्रिय वंश से थे, जो बाद में राजपूत पहचान के रूप में स्थापित हुई। इतिहासकारों, जैसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के विद्वानों, का कहना है कि जोधपुर शिलालेख (Jodhpur Inscription) और बौका प्रतिहार शिलालेख (Bauka Pratihara Inscription) में प्रतिहारों को क्षत्रिय बताया गया है। क्षत्रिय परिषद (Kshatriya Parishad) और राजपूत संगठनों का दावा है कि गुर्जर शब्द एक क्षेत्र (वर्तमान गुजरात या राजस्थान) को दर्शाता है, न कि जाति को। अरुणोदय सिंह परिहार, जो स्वयं को मिहिर भोज का वंशज और राजपूत बताते हैं, का कहना है कि ऐतिहासिक स्रोत राजपूत पहचान का समर्थन करते हैं।
2. गुर्जर दावा
गुर्जर समुदाय का तर्क है कि गुर्जर-प्रतिहार नाम स्वयं उनकी जातिगत पहचान को दर्शाता है। उनका कहना है कि गुर्जर एक प्राचीन जनजाति थी, जिसने उत्तर भारत में कई राजवंश स्थापित किए। अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा जैसे संगठन दावा करते हैं कि मिहिर भोज सहित कई प्रतिहार शासक गुर्जर थे। हिम्मत सिंह गुर्जर जैसे गुर्जर नेता तर्क देते हैं कि जैसे राजपूताना राजपूतों से जुड़ा है, वैसे ही गुर्जर शब्द गुर्जर समुदाय से। कुछ इतिहासकार, जैसे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (Kurukshetra University) के प्रो. एस.के. चहल, सुझाव देते हैं कि गुर्जर एक खानाबदोश जनजाति थे, और मिहिर भोज इस समुदाय से हो सकते थे, हालांकि उन्होंने शासन के लिए क्षत्रिय पहचान अपनाई।
ऐतिहासिक विश्लेषण
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, मिहिर भोज की जातिगत पहचान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना कठिन है। 9वीं शताब्दी में जाति व्यवस्था (Caste System) आज की तरह कठोर नहीं थी। गुर्जर और अन्य जनजातियाँ समय के साथ क्षत्रिय पहचान में समाहित हो सकती थीं। पंजाब विश्वविद्यालय (Panjab University) के इतिहासकार प्रो. एम. राजीवलोचन के अनुसार, गुर्जर-प्रतिहारों को ऐतिहासिक रूप से राजपूत और गुर्जर दोनों माना जाता है, जो इन पहचानों के बीच कोई स्पष्ट विरोधाभास नहीं दर्शाता। प्रतिपाल भाटिया जैसे विद्वानों का कहना है कि गुर्जर शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है और यह जरूरी नहीं कि जाति को दर्शाए।
कोई भी समकालीन स्रोत मिहिर भोज को स्पष्ट रूप से राजपूत या गुर्जर के रूप में वर्गीकृत नहीं करता। इसलिए, दोनों समुदायों के दावे आंशिक रूप से ऐतिहासिक स्रोतों और आंशिक रूप से आधुनिक सामाजिक-राजनीतिक प्रेरणाओं पर आधारित हैं।
आधुनिक विवाद और राजनीति
मिहिर भोज की जातिगत पहचान को लेकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और राजस्थान में तनाव बढ़ा है। यह विवाद अक्सर हिंसक प्रदर्शनों और राजनीतिक हस्तक्षेप का रूप ले लेता है। कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
2021 दादरी विवाद (Dadri Controversy): उत्तर प्रदेश के दादरी में मिहिर भोज की प्रतिमा के उद्घाटन के दौरान गुर्जर शब्द को शिलापट्ट से हटाने पर गुर्जर समुदाय ने विरोध किया, जबकि राजपूत समुदाय ने इसका समर्थन किया।
- 2023 कैथल विवाद (Kaithal Controversy): हरियाणा के कैथल में मिहिर भोज की प्रतिमा को गुर्जर प्रतिहार सम्राट के रूप में चिह्नित करने पर राजपूत समुदाय ने विरोध किया, जिसके बाद पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने मिहिर भोज को गुर्जर-प्रतिहार के रूप में उल्लेख किया, जबकि बीजेपी नेताओं पर शिलालेखों में बदलाव करने के आरोप लगे।
जातिगत संगठन, जैसे क्षत्रिय परिषद और अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा, मिहिर भोज की विरासत का उपयोग सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए करते हैं। गुर्जर समुदाय क्षत्रिय स्थिति और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) आरक्षण दोनों की मांग करता है, जबकि राजपूत अपनी ऐतिहासिक क्षत्रिय पहचान पर जोर देते हैं।
1. मिहिर भोज कौन थे? (Mihir Bhoj kaun the?)
मिहिर भोज (लगभग 836-885 ई.) गुर्जर-प्रतिहार वंश के सबसे महान सम्राटों में से एक थे, जिन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर लगभग 49 वर्षों तक शासन किया। उनका साम्राज्य मुल्तान से बंगाल और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला था। वे विष्णु भक्त थे और उन्हें आदिवराह की उपाधि प्राप्त थी, जो उनके सिक्कों पर अंकित है। मिहिर भोज ने अरब आक्रमणों को रोककर भारत को सुरक्षित किया और पाल तथा राष्ट्रकूट राजवंशों के साथ कन्नौज त्रिकोण में संघर्ष किया। उनकी वीरता और प्रशासनिक कुशलता के कारण उन्हें भारतीय इतिहास में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है।
हालांकि, उनकी जातिगत पहचान (राजपूत या गुर्जर) को लेकर विवाद है। राजपूत समुदाय उन्हें क्षत्रिय मानता है, जबकि गुर्जर समुदाय उन्हें अपने समुदाय का हिस्सा बताता है, जिसके कारण दादरी और कैथल जैसे क्षेत्रों में तनाव देखा गया है।
2. मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर? (Mihir Bhoj Rajput the ya Gujjar?)
मिहिर भोज की जातिगत पहचान को लेकर कोई निश्चित ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, क्योंकि 9वीं शताब्दी में जाति व्यवस्था आज की तरह कठोर नहीं थी। राजपूत समुदाय का दावा है कि मिहिर भोज क्षत्रिय थे और प्रतिहार वंश को राजपूत वंश माना जाता है। ग्वालियर प्रशस्ति और जोधपुर शिलालेख जैसे स्रोत उनकी वंशावली को इक्ष्वाकु वंश या श्रीराम के भाई लक्ष्मण से जोड़ते हैं, जो क्षत्रिय पहचान को मजबूत करते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के इतिहासकार प्रो. ओंकार नाथ सिंह का कहना है कि गुर्जर शब्द क्षेत्र (गुजरात या राजस्थान) को दर्शाता है, न कि जाति।
दूसरी ओर, गुर्जर समुदाय का तर्क है कि गुर्जर-प्रतिहार नाम उनकी जातिगत उत्पत्ति को दर्शाता है। अरब यात्री सुलेमान (851 ई.) ने मिहिर भोज को गुर्जर राजा और उनके क्षेत्र को गुर्जर देश कहा, जिसे गुर्जर समुदाय अपने दावे का आधार मानता है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. एस.के. चहल सुझाते हैं कि मिहिर भोज संभवतः गुर्जर जनजाति से थे, लेकिन शासन के लिए क्षELS पहचान अपनाई।
निष्कर्ष: ऐतिहासिक स्रोत दोनों दावों को आंशिक रूप से समर्थन देते हैं, लेकिन कोई स्पष्ट जवाब नहीं। यह विवाद अधिकतर आधुनिक जाति आधारित राजनीति से प्रेरित है।
3. मिहिर भोज की जाति क्या थी? (Mihir Bhoj ki jaati kya thi?)
मिहिर भोज की जाति को लेकर ऐतिहासिक स्रोत अस्पष्ट हैं। प्रतिहार वंश, जिसे गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है, 8वीं से 11वीं शताब्दी तक शासन करने वाला एक प्रमुख क्षत्रिय वंश था। कुछ इतिहासकार, जैसे BHU के प्रो. ओंकार नाथ सिंह, मिहिर भोज को राजपूत मानते हैं, क्योंकि ग्वालियर प्रशस्ति और अन्य अभिलेख उन्हें इक्ष्वाकु वंश से जोड़ते हैं, और उनके वैवाहिक संबंध भाटी और चौहान जैसे राजपूत वंशों से थे। ह्वेन सांग ने भी गुर्जर देश के शासकों को क्षत्रिय बताया।
वहीं, गुर्जर समुदाय का दावा है कि गुर्जर-प्रतिहार का गुर्जर शब्द उनकी जातिगत पहचान को दर्शाता है। अरब यात्री सुलेमान और मसूदी ने मिहिर भोज को गुर्जर राजा कहा, और कुछ शिलालेखों (जैसे कदवाहा और राधनपुर) में गुर्जर शब्द का उल्लेख है। JNU के प्रो. हरबंस मुखिया का कहना है कि आधुनिक गुर्जर समुदाय का गुर्जर-प्रतिहार से संबंध हो सकता है, जो राजपूत वंश का हिस्सा था।
आधुनिक विवाद: दादरी (2021) और कैथल (2023) में प्रतिमा शिलालेखों पर गुर्जर शब्द को लेकर तनाव हुआ, जो जाति आधारित राजनीति को दर्शाता है।
4. मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार वंश से थे? (Mihir Bhoj Gurjara-Pratihara vansh se the?)
हाँ, मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार वंश के छठे शासक थे, जिन्होंने 836 से 885 ई. तक शासन किया। इस वंश की स्थापना नागभट्ट प्रथम ने की थी, और यह 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में प्रभावशाली रहा। गुर्जर-प्रतिहार नाम का गुर्जर हिस्सा संभवतः गुर्जर देश (वर्तमान राजस्थान और गुजरात) को दर्शाता है, जहां वंश का उदय हुआ। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह वंश क्षत्रिय था, जिसे बाद में राजपूत के रूप में पहचाना गया, जबकि गुर्जर समुदाय इसे अपनी जातिगत उत्पत्ति से जोड़ता है।
मिहिर भोज ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया और पाल तथा राष्ट्रकूट वंशों के साथ कन्नौज त्रिकोण में संघर्ष किया। उनका साम्राज्य नर्मदा से हिमालय और बंगाल तक फैला था।
5. मिहिर भोज को राजपूत क्यों माना जाता है? (Mihir Bhoj ko Rajput kyon maana jaata hai?)
मिहिर भोज को राजपूत मानने के पीछे कई ऐतिहासिक तर्क हैं। प्रतिहार वंश, जिससे मिहिर भोज थे, को इतिहासकार प्रारंभिक राजपूत वंश मानते हैं। ग्वालियर प्रशस्ति उनकी वंशावली को इक्ष्वाकु वंश (श्रीराम का वंश) से जोड़ती है, जो क्षत्रिय पहचान को दर्शाती है। जोधपुर शिलालेख और बौका शिलालेख में प्रतिहारों को क्षत्रिय बताया गया है। ह्वेन सांग ने गुर्जर देश के शासकों को क्षत्रिय कहा, और मिहिर भोज के वैवाहिक संबंध भाटी और चौहान जैसे राजपूत वंशों से थे।
BHU के इतिहासकारों का कहना है कि गुर्जर शब्द क्षेत्र (गुजरात-राजस्थान) को दर्शाता है, न कि जाति। कश्मीर के कवि कल्हण ने राज तरंगिणी में मिहिर भोज की वीरता का उल्लेख किया, जो उनकी क्षत्रिय छवि को मजबूत करता है। राजपूत संगठन, जैसे करणी सेना, मिहिर भोज को अपनी विरासत का हिस्सा मानते हैं और गुर्जर दावों को इतिहास के साथ छेड़छाड़ कहते हैं।
6. मिहिर भोज गुर्जर सम्राट क्यों कहलाते हैं? (Mihir Bhoj Gujjar samrat kyon kehlata hai?)
मिहिर भोज को गुर्जर सम्राट कहने का आधार गुर्जर-प्रतिहार नाम और कुछ ऐतिहासिक स्रोत हैं। अरब यात्री सुलेमान (851 ई.) ने मिहिर भोज को गुर्जर राजा और उनके क्षेत्र को गुर्जर देश कहा, जिसे गुर्जर समुदाय अपनी जातिगत पहचान से जोड़ता है। कदवाहा, राधनपुर, और अन्य शिलालेखों में गुर्जर शब्द का उल्लेख है, जिसे कुछ लोग जाति के रूप में व्याख्या करते हैं। JNU के प्रो. हरबंस मुखिया का कहना है कि आधुनिक गुर्जर समुदाय का गुर्जर-प्रतिहार से संबंध हो सकता है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. चहल के अनुसार, गुर्जर एक खानाबदोश जनजाति थी, और मिहिर भोज संभवतः इस समुदाय से थे, लेकिन शासन के लिए क्षत्रिय पहचान अपनाई। आधुनिक समय में, गुर्जर समुदाय मिहिर भोज को अपनी विरासत का हिस्सा मानता है, और दादरी और कैथल में प्रतिमा विवादों में गुर्जर शब्द को जोड़ा गया, जिससे यह दावा और मजबूत हुआ।
7. मिहिर भोज का इतिहास क्या है? (Mihir Bhoj ka itihas kya hai?)
मिहिर भोज (836-885 ई.) गुर्जर-प्रतिहार वंश के शासक थे, जिन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। उनके पिता रामभद्र के कमजोर शासन के बाद मिहिर भोज ने वंश को पुनर्जनन दिया और एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, जो मुल्तान से बंगाल और कश्मीर से नर्मदा तक फैला। उन्होंने अरब आक्रमणों को सिंध में रोका, पाल राजा देवपाल के पुत्र को हराया, और राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष को पराजित किया।
मिहिर भोज विष्णु और शिव के भक्त थे, और उनके सिक्कों पर आदिवराह की छवि थी। अरब यात्री सुलेमान और मसूदी ने लिखा कि उनकी राजधानी कन्नौज में 7 किले और 10,000 मंदिर थे, और उनका राज्य समृद्ध था। उनकी सेना, जिसमें कनकपाल परमार गुर्जर जैसे सेनापति थे, ने तिब्बत और तुर्किस्तान के आक्रमणों को रोका। उनकी जातिगत पहचान (राजपूत या गुर्जर) को लेकर आज विवाद है, जो जाति आधारित राजनीति से प्रेरित है।
8. मिहिर भोज की प्रतिमा पर विवाद क्यों हुआ? (Mihir Bhoj ki pratima par vivaad kyon hua?)
मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर राजपूत और गुर्जर समुदायों के बीच विवाद उनकी जातिगत पहचान को लेकर है। प्रमुख घटनाएँ:
दादरी विवाद (2021): उत्तर प्रदेश के दादरी में मिहिर भोज पीजी कॉलेज में उनकी प्रतिमा के शिलालेख से गुर्जर शब्द हटाने पर गुर्जर समुदाय ने विरोध किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनावरण समारोह के बाद तनाव बढ़ा, और शिलालेख को चादर से ढक दिया गया।
कैथल विवाद (2023): हरियाणा के कैथल में प्रतिमा पर गुर्जर प्रतिहार सम्राट लिखने पर राजपूत समुदाय ने विरोध किया, जिसके कारण धारा 144 लागू हुई।
ग्वालियर विवाद (2021): ग्वालियर में प्रतिमा पर गुर्जर शब्द जोड़ने पर राजपूत और **ग16⁊ समुदायों के बीच हिंसक घटनाएँ हुईं, जिसके कारण मुरैना में धारा 144 लागू हुई।
राजनीतिक कोण: अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने बीजेपी पर गुर्जर शब्द हटाने का आरोप लगाया, जबकि बीजेपी नेताओं ने इसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ बताया। यह विवाद जाति आधारित राजनीति और चुनावी लाभ से प्रेरित है।
9. गुर्जर अनुसूचित जनजाति में आते हैं? (Gujjar anusuchit janjati mein aate hain?)
गुर्जर समुदाय की अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) स्थिति क्षेत्र के आधार पर भिन्न है। जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में गुर्जर अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध हैं, जिसके कारण उन्हें आरक्षण और अन्य लाभ मिलते हैं। हालांकि, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और राजस्थान जैसे राज्यों में गुर्जर को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) माना जाता है।
गुर्जर समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहा है, खासकर राजस्थान में, जहां 2007-08 में हिंसक आंदोलन हुए। उनकी मांग का आधार यह है कि कई गुर्जर खानाबदोश और पशुपालक जीवन जीते हैं, जो अनुसूचित जनजाति की विशेषताओं से मेल खाता है। हालांकि, सरकार और कुछ इतिहासकारों का कहना है कि गुर्जर ऐतिहासिक रूप से क्षत्रिय वंश (जैसे गुर्जर-प्रतिहार) से संबंधित हैं, जिसके कारण उनकी मांग विवादास्पद है।
10. मिहिर भोज के समय क्षत्रिय और गुर्जर कौन थे? (Mihir Bhoj ke samay Kshatriya aur Gujjar kaun the?)
9वीं शताब्दी में, जब मिहिर भोज शासन कर रहे थे, क्षत्रिय एक सामाजिक वर्ण था, जिसमें योद्धा और शासक वर्ग शामिल थे। गुर्जर-प्रतिहार, पाल, और राष्ट्रकूट जैसे वंशों के शासक स्वयं को क्षत्रिय कहते थे, चाहे उनकी उत्पत्ति जनजातीय रही हो। गुर्जर संभवतः एक खानाबदोश या अर्ध-खानाबदोश जनजाति थी, जो गुजरात और राजस्थान में बसी और बाद में क्षत्रिय पहचान में समाहित हुई।
ह्वेन सांग ने गुर्जर देश के शासकों को क्षत्रिय बताया, और अरब यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज को गुर्जर राजा कहा, जिससे यह संकेत मिलता है कि गुर्जर और क्षत्रिय पहचान उस समय परस्पर जुड़ी थी। प्रतिहार वंश ने स्वयं को लक्ष्मण (श्रीराम के भाई) का वंशज बताया, जो उनकी क्षत्रिय छवि को मजबूत करता है। आधुनिक समय में, राजपूत और गुर्जर दोनों इन क्षत्रिय वंशों से अपनी उत्पत्ति जोड़ते हैं।
निष्कर्ष
मिहिर भोज एक महान शासक थे, जिन्होंने गुर्जर-प्रतिहार वंश के तहत उत्तर भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया। ऐतिहासिक रूप से, वे संभवतः क्षत्रिय पहचान के साथ शासक थे, जो बाद में राजपूत पहचान से जुड़ी। हालांकि, गुर्जर शब्द उनके वंश या क्षेत्रीय उत्पत्ति से संबंधित हो सकता है। प्राचीन स्रोतों में स्पष्ट जातिगत उल्लेख की कमी के कारण न तो राजपूत और न ही गुर्जर दावा पूर्ण रूप से सिद्ध किया जा सकता। आधुनिक विवाद जाति आधारित राजनीति और सामाजिक पहचान की खोज को अधिक दर्शाते हैं।
मिहिर भोज का इतिहास हमें यह सिखाता है कि भारत का अतीत जटिल और बहुस्तरीय है। उनकी विरासत को एक समुदाय तक सीमित करने के बजाय, हमें उनके योगदान को समग्र रूप से समझना चाहिए।
यदि आप मिहिर भोज के शिलालेखों, गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य, या विशिष्ट विवादों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो हमें बताएँ!
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