तंवर/तौमर, आप सभी को हमारे तंवर वंश की कुलदेवी चिलाय माता ( Tanwar/ Tomar Kuldevi - Chilay Mata )के बारे में जानकारी देना चाहता हूँ। चिलाय माता हमारे वंश की प्रमुख आराध्य देवी हैं, और हम तंवर वंश के लोग उन्हें बड़े श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं। चिलाय माता का इतिहास ( Chilay Mata History ) बहुत दिलचस्प है, खासकर इस बात को लेकर कि कैसे उन्होंने सफेद चील के रूप में राजा जयरथ के पुत्र, बालक जाटूसिंह की रक्षा की थी।
हमारे इतिहास में चिलाय माता को योगमाया, योगेश्वरी, और जोग माया के नाम से भी जाना जाता है। दिल्ली में पांडवों द्वारा स्थापित मंदिर में इस देवी की पूजा होती थी, और बाद में राजा अनंगपाल तंवर ने उस मंदिर को पुनः स्थापित करवाया। चिलाय माता के मंदिर राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में कई जगहों पर हैं। खासकर राजस्थान के रामदेवरा, सलूम्बर और सरूंड गांव में इनकी पूजा होती है।
हमारे तंवर वंश के लोग चिलाय माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं, और उनकी पूजा हमारे लिए जीवन का अहम हिस्सा है। हर जगह इनकी पूजा अलग-अलग रूपों में होती है, जैसे मनसा देवी, सरुंड माता, शीतला माता, आदि, लेकिन मूल रूप से वे चिलाय माता के रूप में पूजी जाती हैं।
आशा है, इस जानकारी से आपको चिलाय माता के महत्व और हमारे तंवर वंश की धार्मिक परंपराओं को समझने में मदद मिलेगी। अगर आपको हमारे वंश के बारे में और जानकारी चाहिए, तो आप हमारी वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।
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चिलाय माता का इतिहास
चिलाय माता का इतिहास ( Chilay Mata History ) बहुत ही अद्भुत और प्रेरणादायक है। यह देवी तंवर और तौमर वंश की कुलदेवी ( Tanwar / Tomar Kuldevi ) मानी जाती हैं। कहा जाता है कि चिलाय माता ने सफेद चील का रूप धारण किया था और इस रूप में वह राजा जयरथ के पुत्र बालक जाटूसिंह तंवर की रक्षा करने के लिए आई थीं। बालक जाटूसिंह की मुश्किलें बहुत बढ़ गई थीं, लेकिन माता ने चील का रूप लेकर उनकी रक्षा की और तभी से माता को चिलाय माता के नाम से जाना जाने लगा।
माता के इस रूप और उनके वाहन के रूप में चिल पक्षी का नाम जुड़ा था, इसी कारण उनका नाम चिलाय माता पड़ा। तंवर वंश के लोग आज भी अपनी कुलदेवी के रूप में चिलाय माता की पूजा करते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, चिलाय माता के मंदिर कई स्थानों पर स्थापित किए गए थे, जिनमें राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। इन मंदिरों में लोग श्रद्धा और आस्था के साथ माता की पूजा करते हैं। हर जगह चिलाय माता के आशीर्वाद से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।
चिलाय माता का मूल स्थान मायन (बलवाड़ी), जिला रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया जाता है। यहाँ पर तंवर वंश के लोग अपनी कुलदेवी की पूजा करते हैं। इसके अलावा, पांडवों ने भी इन्द्रप्रस्थ में योगमाया के रूप में माता का मंदिर बनवाया था, जो बाद में चिलाय माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
चिलाय माता का इतिहास हमारे वंश के गौरव को दर्शाता है और यह हमें हमारी शौर्य परंपरा को याद दिलाता है।
चिलाय माता का मंदिर
चिलाय माता का मंदिर ( Chilay Mata Temple ) भारतीय उपमहाद्वीप में कई स्थानों पर फैला हुआ है, और इन मंदिरों का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व तंवर (तौमर) वंश के लिए अत्यधिक है। चिलाय माता, जिन्हें तंवर वंश की कुलदेवी माना जाता है, उनकी पूजा और आराधना से तंवर राजपूतों को समृद्धि, शक्ति और विजय प्राप्त हुई। इतिहास के अनुसार, जब राजा जयरथ के बेटे, बालक जाटूसिंह, तंवर की जीवन रक्षा के लिए सफेद चील के रूप में देवी ज्वाला (योगमाया) ने उनकी रक्षा की थी, तो उसी समय से माता को चिलाय माता के नाम से पूजा जाने लगा। इसके बाद, तंवर वंश के हर व्यक्ति ने चिलाय माता को अपनी कुलदेवी मानते हुए उनकी पूजा करना शुरू किया।
चिलाय माता के मंदिरों का इतिहास और स्थान
चिलाय माता का मंदिर कई प्रमुख स्थानों पर स्थित है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। इनमें से सबसे प्रमुख स्थान हैं:
1. मायन (बलवाड़ी), रेवाड़ी (हरियाणा)
यह स्थान चिलाय माता के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पर स्थित मंदिर के बारे में माना जाता है कि यही वह स्थान था, जहां माता ने सफेद चील के रूप में राजा जयरथ के बेटे, जाटूसिंह की रक्षा की थी। यह स्थान तंवर वंश के लोगों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।
2. राजस्थान में मंदिर
राजस्थान में कई प्रमुख स्थानों पर चिलाय माता के मंदिर स्थित हैं। इनमें से रामदेवरा, सलूम्बर, ठि-बोरज तंवरान, और सरूंड गांव का नाम लिया जाता है। इन मंदिरों में विशेष रूप से तंवर वंश के लोग पूजा अर्चना करते हैं, और इनके धार्मिक महत्व को कोई नकार नहीं सकता।
3. मध्य प्रदेश में मंदिर
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के पास चंबल नदी के किनारे स्थित चिलाय माता का मंदिर श्रद्धालुओं के बीच एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहां पर लोग अपनी मनोकामनाओं के लिए पूजा करने आते हैं और देवी की कृपा प्राप्त करते हैं। इस मंदिर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व ने इसे एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बना दिया है।
4. हिमाचल प्रदेश में मंदिर
हिमाचल प्रदेश के नुरपुर किले में भी चिलाय माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर क्षेत्रीय इतिहास और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। नुरपुर किला न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इस किले में स्थित चिलाय माता का मंदिर भी श्रद्धालुओं के बीच बहुत ही श्रद्धेय स्थान है।
5. गुडगाँव (हरियाणा)
गुडगाँव के पास स्थित एक मंदिर भी चिलाय माता का प्रमुख स्थल है। 14वीं शताब्दी में पाटन के राजाओं द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर में ब्राह्मणों को सेवा में नियुक्त किया गया था और लंबे समय तक यह स्थान श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना रहा। हालांकि, 17वीं शताब्दी के बाद पाटन के राजाओं ने यहां सेवा बंद कर दी थी, फिर भी यह स्थान अब भी महत्वपूर्ण है।
इन मंदिरों की खासियत यह है कि यहां पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, आस्था और आशीर्वाद प्राप्त होता है। इन मंदिरों में स्थित मूर्तियां और शिलालेख यह दिखाते हैं कि यह स्थान प्राचीन समय से पूजा और श्रद्धा का केंद्र रहे हैं। इन स्थानों पर यात्रा करने से व्यक्ति को न केवल धार्मिक अनुभव मिलता है, बल्कि वह अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कृति से भी जुड़ता है।
चिलाय माता के मंदिरों की अद्भुत स्थापत्य कला, यहां की शांति और यहां के दृश्य श्रद्धालुओं को एक अलग प्रकार की अनुभूति प्रदान करते हैं। इन मंदिरों में प्रवेश करते ही एक विशेष प्रकार की ऊर्जा और दिव्यता का अनुभव होता है, जो श्रद्धालुओं को आंतरिक शांति और शक्ति प्रदान करती है। मंदिरों में प्रत्येक मूर्ति, हर दीवार, और स्तंभ यह बताता है कि यह स्थान सदियों से एक शक्ति केंद्र रहा है। यहां आने से न केवल व्यक्ति की धार्मिक आस्था को बल मिलता है, बल्कि एक अद्भुत इतिहास से भी जुड़ने का अवसर मिलता है।
चिलाय माता के विभिन्न नाम और रूप
चिलाय माता को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। हर क्षेत्र और हर जाति का अपना विशिष्ट तरीका होता है माता के प्रति आस्था व्यक्त करने का, और इसी तरह उनके नाम भी भिन्न होते हैं। सबसे प्रसिद्ध नाम "चिलाय माता" है, लेकिन इसके अलावा कई और नाम भी प्रचलित हैं जैसे:
1. योगमाया (Yogmaya): दिल्ली और ग्वालियर क्षेत्र में चिलाय माता को योगमाया के नाम से भी जाना जाता है। पांडवों ने उन्हें अपनी कुलदेवी मानकर इन्द्रप्रस्थ में स्थापित किया था, और उनके बाद दिल्ली के तंवर शासकों ने भी योगमाया का मंदिर बनवाया।
2. योगेश्वरी (Yogeshwari): ग्वालियर और कुछ अन्य स्थानों पर चिलाय माता को योगेश्वरी के नाम से पूजा जाता है। यह नाम भी योगमाया के ही रूप में माना जाता है और माता की शक्ति को दर्शाता है।
3. जोग माया (Jog Maya): कुछ क्षेत्रों में चिलाय माता को जोग माया के नाम से भी पुकारा जाता है, जो उनके दिव्य और तांत्रिक शक्तियों का प्रतीक है।
4. सरूण्ड माता (Sarund Mata): राजस्थान और कुछ अन्य जगहों पर चिलाय माता को सरूण्ड माता के नाम से भी पूजा जाता है। यह नाम खासकर सरूण्ड गाँव और आसपास के क्षेत्र में प्रचलित है।
5. मनसादेवी (Mansadevi): कुछ स्थानों पर जब माता द्वारा मनोकामना पूरी की जाती है तो उन्हें मनसादेवी के नाम से जाना जाता है। खासकर जाटू तंवरों के बीच यह नाम बहुत प्रसिद्ध है।
इन नामों का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग संदर्भ होता है, लेकिन सभी नामों के पीछे एक ही शक्ति और एक ही देवी का रूप होता है। चिलाय माता के इन नामों के माध्यम से हम उनके अलग-अलग रूपों और शक्तियों को समझ सकते हैं और उनके प्रति आस्था और श्रद्धा व्यक्त कर सकते हैं।
तंवर/तौमर कुलदेवी क्यों हैं चिलाय माता?
चिलाय माता तंवर (या तोमर) वंश की कुलदेवी मानी जाती हैं, और इस सम्मान के पीछे एक गहरी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता है। तंवर और तोमर वंश, जो कि राजपूतों के महत्वपूर्ण और पुरानी जातियों में से एक है, अपनी कुलदेवी के रूप में चिलाय माता की पूजा करते हैं। इसके पीछे एक विशेष कहानी और कारण है।
चिलाय माता का इतिहास और उनकी पूजा इस बात से जुड़ी हुई है कि तंवर वंश के पूर्वजों ने पांडवों के समय से माता की पूजा करना शुरू किया था। कहा जाता है कि पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ में योगमाया (जो बाद में चिलाय माता के नाम से जानी गईं) को अपनी कुलदेवी माना था। इसी देवी की पूजा को तंवरों ने भी अपनाया और इसके बाद से चिलाय माता को तंवर वंश की कुलदेवी मान लिया गया। एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि माता चिलाय (जो पहले योगमाया या जोग माया के रूप में पूजी जाती थी) ने सफेद चील का रूप धारण किया था और राजा जयरथ के पुत्र, बालक जाटूसिंह तंवर की रक्षा की थी। इस अद्भुत घटना के कारण माता का नाम चिलाय माता पड़ा। यह घटना तंवर वंश के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि इस रक्षा के बाद तंवरों ने चिलाय माता को अपनी कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया। चिलाय माता का वाहन सफेद चील था, और इस कारण उन्हें चिलाय माता के नाम से जाना गया। चील पक्षी का प्रतीक तंवरों की वीरता और रक्षा की भावना को दर्शाता है, और यही कारण है कि तंवर वंश के लोग चिलाय माता की पूजा करते हैं।
इसके अलावा, कई स्थानों पर चिलाय माता के मंदिर भी स्थापित हैं, जिनमें तंवर वंश के लोग श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में चिलाय माता के मंदिर प्रमुख हैं, जहां तंवर वंश के लोग अपनी कुलदेवी की पूजा करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चिलाय माता तंवर वंश के लिए केवल एक देवी नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व और पहचान का प्रतीक हैं। उनके द्वारा दी गई सुरक्षा, आशीर्वाद, और आध्यात्मिक शक्ति ने तंवर वंश को हमेशा अपनी कुलदेवी के रूप में उन्हें पूजने और उनका सम्मान करने के लिए प्रेरित किया। चिलाय माता के रूप में तंवरों का इतिहास और उनकी आस्था एक गहरी और सम्मानजनक परंपरा का हिस्सा बन चुकी है।
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निष्कर्ष
तो, कुल मिलाकर देखा जाए तो चिलाय माता तंवर (या तोमर) वंश की कुलदेवी हैं और उनके साथ जुड़ी हर एक कहानी, परंपरा और पूजा की एक गहरी और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। चिलाय माता का नाम और उनकी पूजा तंवर वंश के लिए सिर्फ एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि एक पहचान और गर्व का प्रतीक भी है। उनके द्वारा बालक जाटूसिंह की रक्षा की गई थी और उनके वाहन के रूप में सफेद चील को माना जाता है, जो तंवरों की वीरता और सुरक्षा का प्रतीक बन गया।
चिलाय माता का इतिहास और पूजा आज भी तंवर वंश के लिए अहम है, और उनके मंदिर देश के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धा और सम्मान के साथ पूजे जाते हैं। इस देवी का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह तंवर वंश की सांस्कृतिक धरोहर और उनके अस्तित्व की पहचान भी है। अगर आप भी तंवर वंश से हैं, तो आपको इस धरोहर और परंपरा पर गर्व होना चाहिए, और अपनी कुलदेवी चिलाय माता की पूजा और आशीर्वाद से जीवन में सफलता और समृद्धि की कामना करनी चाहिए।
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