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Why Kali Stands on Shiva



नमस्कार, मैं देवेंद्र सिंह और आपका स्वागत है राजपूत कुलदेवी में। आज हम एक खास और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा के बारे में चर्चा करेंगे, जिसमें काली माता भगवान शिव के ऊपर पैर रखकर खड़ी नजर आती हैं

यह चित्रण काली माता के गहरे क्रोध और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जब उन्होंने असुरों और दुष्ट शक्तियों का नाश किया। कथा के अनुसार, जब काली माता ने अपना रौद्र रूप धारण किया और पूरी सृष्टि में तबाही मचाई, तब भगवान शिव ने अपने समर्पण से उन्हें शांत किया।

काली माता के पैर शिव जी के ऊपर रखकर खड़े होने का चित्रण यह बताता है कि जब देवी के क्रोध की स्थिति थी, तो भगवान शिव ने खुद को उनके पैरों के नीचे रखकर उन्हें शांत किया। इस घटना में शिव जी का समर्पण और काली माता की शक्ति का अद्भुत संतुलन देखा जाता है, जो सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक था।


आइए, इस रोचक और गहरे अर्थ से भरी कहानी के बारे में अधिक जानें।



काली माँ का इतिहास


Why Kali Stands on Shiva history



काली माँ हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें महाकाली भी कहा जाता है। वे शक्ति, संहार और पुनर्निर्माण की देवी मानी जाती हैं। काली माँ का रूप बहुत ही विकराल और भयप्रद होता है, जिसमें उनका काला रंग और गुस्से से भरा चेहरा उनकी शक्ति और क्रोध का प्रतीक है। उनके गहनों में माला की जगह असुरों के सिर होते हैं, और उनकी जीभ बाहर निकलती हुई दिखाई देती है, जो उनके शक्ति और नकारात्मकता को नष्ट करने के रूप को दर्शाता है।

काली माँ का जन्म देवी पार्वती के एक रूप के रूप में हुआ था। जब राक्षस रक्तबीज ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया और उसका रक्त गिरने से नए असुर उत्पन्न हो जाते थे, तब देवी पार्वती ने काली का रूप धारण किया। काली माँ का उद्देश्य इन असुरों का संहार करना था। उनका रूप इतना शक्तिशाली और विकराल था कि किसी भी देवता या असुर का सामना करना उनके लिए संभव नहीं था। काली माँ ने अपनी जीभ को फैलाकर रक्तबीज के रक्त को पी लिया और असुरों का वध किया।




काली माँ ने शिव जी के ऊपर पैर क्यों रखा?


Why Kali Stands on Shiva history full story in hindi



क्या आपने कभी सोचा है कि काली माँ के चित्रों में भगवान शिव के ऊपर उनके पैर क्यों रखे होते हैं? यह एक बहुत दिलचस्प और गहरी कहानी है। तो आइए, इसे एक दोस्त की तरह समझते हैं।

काफी समय पहले की बात है, जब रक्तबीज नामक एक राक्षस ने भगवान शिव से एक खास वरदान लिया था। इस वरदान के अनुसार, अगर रक्तबीज का खून गिरता, तो उसकी जगह सैकड़ों और राक्षस पैदा हो जाते थे। अब सोचिए, ऐसे में देवताओं के लिए उसे हराना कितना मुश्किल हो गया होगा! रक्तबीज ने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करते हुए देवताओं पर आतंक मचा दिया।

इस हालात को देखकर, देवता माँ काली के पास पहुंचे। माँ काली ने अपना विकराल रूप धारण किया और रक्तबीज के खून को पीने लगीं। जैसे ही उन्होंने खून पीना शुरू किया, उनका गुस्सा और बढ़ गया और वे अपनी चेतना खो बैठीं। अब वे न सिर्फ रक्तबीज को, बल्कि देवताओं को भी नुकसान पहुंचाने लगीं।

अब देवताओं के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, तो वे भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे माँ काली के गुस्से को शांत करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने काली के क्रोध को शांत करने के लिए खुद को काली के सामने लेटाया। जब माँ काली ने देखा कि भगवान शिव उनके सामने लेटे हुए हैं, तो उनका क्रोध और बढ़ा। फिर उन्होंने अपना पैर शिव जी के ऊपर रख दिया।

जैसे ही माँ काली ने शिव जी के ऊपर पैर रखा, उन्हें एहसास हुआ कि वह अपने पति के ऊपर पैर नहीं रख सकतीं, और उनका गुस्सा अचानक शांत हो गया। इस पल में माँ काली ने अपनी जीभ बाहर निकाली और दांतों से उसे दबा लिया, जो यह दिखाता है कि वह अब अपनी क्रोध पर नियंत्रण कर रही थीं

यह पूरी घटना हमें एक बहुत महत्वपूर्ण बात सिखाती है: शक्ति और समर्पण का संतुलन बहुत जरूरी है। शिव जी ने काली के सामने समर्पण किया और इसने काली के विकराल रूप को शांत कर दिया। यह दिखाता है कि कभी-कभी हमें अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना चाहिए और शांतिपूर्वक समस्याओं का हल निकालना चाहिए।

तो ये थी वो कहानी, जो हमें यह सिखाती है कि जीवन में संतुलन कितना जरूरी है, और कभी भी किसी भी समस्या का हल शांति और समर्पण से निकाला जा सकता है।



काली माँ और शिव जी के रिश्ते क्या हैं?



काली माँ और शिव जी का संबंध गहरा और विशेष है। काली माँ शिव जी की पत्नी हैं और दोनों के बीच एक अद्भुत और सशक्त संबंध है, जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है।

काली माँ को शक्ति की देवी और शिव जी को संहारक (विनाशक) के रूप में पूजा जाता है। काली माँ का रूप अत्यंत विकराल और भयंकर है, जो शत्रुओं के विनाश के लिए जाना जाता है। वहीं, शिव जी का रूप शांत और संयमित है, जो जीवन के पुनर्निर्माण और ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार, काली माँ और शिव जी के बीच एक संपूर्ण संतुलन है, जो दोनों की शक्तियों के सामंजस्य को दर्शाता है।

एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा में कहा गया है कि जब काली माँ राक्षसों के वध में अत्यधिक उग्र हो गईं और उनके क्रोध से संसार में विनाश होने लगा, तो भगवान शिव ने काली माँ के पैर के नीचे आकर उनका क्रोध शांत किया। यह घटना यह बताती है कि शिव जी और काली माँ का संबंध सिर्फ पति-पत्नी का नहीं, बल्कि एक गहरी ऊर्जा और शक्ति का भी संबंध है। शिव जी के शांति और नियंत्रण का काली माँ के उग्र रूप को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है।



काली माँ के बारे में क्या खास बातें हैं?



काली माँ के बारे में बहुत सी खास बातें हैं जो उन्हें एक अद्वितीय देवी बनाती हैं। सबसे पहले तो, काली माँ को शक्ति की देवी माना जाता है। वह विनाश और निर्माण दोनों की प्रतीक हैं, क्योंकि जीवन और मृत्यु का चक्र उनके नियंत्रण में होता है। उनका रूप बहुत ही भयंकर और शक्तिशाली होता है, जिससे हर कोई डरता है, लेकिन साथ ही उनकी उपस्थिति से शांति और संतुलन भी मिलता है।

काली माँ का शरीर काले रंग का होता है, और उनके चार हाथ होते हैं। एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में ढाल, तीसरे में राक्षसों के सिर और चौथे में वरदान देने वाली मुद्रा होती है। उनका गुस्सैल चेहरा और रक्त से सने हुए हाथ ये सब दिखाते हैं कि वे बुराई को खत्म करने के लिए हर समय तैयार रहती हैं।

काली माँ का अवतार खास तौर पर राक्षसों और असुरों को हराने के लिए हुआ था। उनके सामने कोई राक्षस नहीं टिक सकता था। इसके अलावा, काली माँ का भगवान शिव के साथ भी गहरा संबंध है। एक कहानी के अनुसार, काली माँ जब राक्षसों को नष्ट कर रही थीं, तो उनका क्रोध इतना बढ़ गया कि वे देवताओं के लिए भी खतरे की वजह बनने लगीं। तब भगवान शिव ने खुद को उनके रास्ते में बिछा दिया, जिससे काली माँ का गुस्सा शांत हुआ।

काली माँ की पूजा खासतौर पर शाक्त सम्प्रदाय के लोग करते हैं, और माना जाता है कि उनकी पूजा से जीवन में नकारात्मकता और शारीरिक-मानसिक समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही, यह पूजा व्यक्ति को अपने शत्रुओं से भी सुरक्षा प्रदान करती है। काली माँ सचमुच में शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक हैं!



शिव जी के साथ काली माँ का क्रोध क्यों शांत हुआ?



काली माँ का क्रोध शिव जी के साथ तब शांत हुआ जब भगवान शिव ने खुद को उनके रास्ते में बिछा दिया। यह घटना उस समय की है जब काली माँ अपने क्रोध में अंधी हो गईं और राक्षसों का नाश करते-करते अपनी चेतना खो बैठीं। एक राक्षस, रक्तबीज, से युद्ध करते हुए उनका गुस्सा इतना बढ़ गया कि वे देवताओं पर भी हमला करने लगीं। उनके इस विकराल रूप को देखकर सृष्टि में हाहाकार मच गया।

देवताओं ने देखा कि काली माँ का क्रोध शांत करना अब किसी के बस का नहीं रहा, इसलिए वे भगवान शिव के पास गए और उनसे काली माँ का गुस्सा शांत करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने समझा कि काली माँ को शांत करने के लिए उन्हें कुछ विशेष करना होगा। तब शिव जी ने अपनी जान की परवाह किए बिना, काली माँ के मार्ग में खुद को बिछा दिया। जैसे ही काली माँ का पैर भगवान शिव के ऊपर पड़ा, उन्हें एहसास हुआ कि वह उनके पति हैं। इस से उनका गुस्सा शांत हो गया और वे सहज हो गईं।


काली माँ का विकराल रूप क्यों होता है?



काली माँ का विकराल रूप बस एक दम अलग ही है, है ना? दरअसल, यह उनका क्रोधित और शक्तिशाली रूप है जो तब दिखता है जब बुराई को खत्म करना ज़रूरी हो। जब राक्षसों और असुरों ने दुनिया में उत्पात मचाया था, तो काली माँ ने अपने इस रूप को धारण किया। उनका ये रूप किसी भी बुराई को नष्ट करने के लिए जरूरी था, क्योंकि काली माँ की ताकत इतनी ज़बरदस्त होती है कि कोई भी बुराई उनके सामने टिक नहीं सकती।

उनका विकराल रूप यानी काले रंग में घेरा हुआ शरीर, खून और हड्डियाँ, ये सब उनके क्रोध को और शक्ति को दिखाते हैं। लेकिन यह रूप बुरा नहीं है, बल्कि यह अच्छाई और सत्य की रक्षा के लिए होता है। काली माँ इस रूप में असुरों और राक्षसों का सफाया करती हैं और धर्म की स्थापना करती हैं।

काली माँ के इस रूप से यह भी समझ में आता है कि जीवन में निर्माण और विनाश दोनों की जरूरत होती है। बिना विनाश के, नया निर्माण मुमकिन नहीं होता। तो, काली माँ का विकराल रूप उसी विनाश को दर्शाता है, जो बुराई को खत्म करने के लिए जरूरी है।



क्या काली माँ का रूप और शिव जी का रूप अलग हैं?



काली माँ और शिव जी का रूप अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों के बीच गहरी आत्मीयता और रिश्ते भी हैंकाली माँ का रूप आमतौर पर भयंकर और विकराल होता है, जो क्रोध और शक्ति का प्रतीक होता है। उनका रूप अक्सर काले रंग में होता है, जिसके साथ लहूलुहान शरीर, खून की धार, और उग्र आक्रामकता दिखाई जाती है। उनके चेहरे पर एक तरह का दानवीय क्रोध होता है, और वे अक्सर अपने दांतों से जीभ को दबाए हुए होती हैं, जो उनके क्रोध और विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है।

वहीं, शिव जी का रूप शांति, विनम्रता और ध्यान का प्रतीक होता है। शिव का रूप बहुत ही शांत, संजीदा और ध्यानमग्न होता है। वे अक्सर तीसरे नेत्र, हलाहल विष की धारा, और त्रिशूल जैसे प्रतीकों के साथ दिखाई देते हैं। शिव जी का रूप गहन ध्यान और तपस्या को दर्शाता है, जबकि काली माँ का रूप बुराई को समाप्त करने और शक्ति का प्रतीक है।


काली माँ का मंत्र - शक्तिशाली ध्यान और पूजा के लिए



काली माँ का मंत्र एक शक्तिशाली और दिव्य ध्वनि है, जिसे भगवान शिव और देवी काली की पूजा के दौरान उच्चारण किया जाता है। इस मंत्र के जाप से नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त किया जा सकता है और आंतरिक शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है।

काली माँ का एक प्रमुख मंत्र है:

"ॐ क्लीं काली काली महाकाली महाकालिके महामाया महामोहिने स्वाहा"

यह मंत्र देवी काली की महिमा और शक्तियों का वर्णन करता है और मानसिक शांति, नकारात्मकता को दूर करने और आंतरिक बल प्राप्त करने के लिए बोला जाता है।

इसके अलावा, एक और मंत्र जो काली माँ के पूजा में खास है, वह है:

"ॐ श्रीं क्लीं काली महाकाली महाक्रूरी महाक्रूरिणि स्वाहा"

इन मंत्रों का जाप ध्यान, साधना और शांति के साथ करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है और काली माँ की कृपा प्राप्त होती है।





काली माँ का जन्मदिन कब होता है?


असल में, काली माँ का कोई फिक्स जन्मदिन नहीं है, लेकिन उनकी पूजा और सम्मान के लिए कुछ खास दिन होते हैं। काली माँ की पूजा नवरात्रि और महाशिवरात्रि जैसे खास अवसरों पर बहुत धूमधाम से की जाती है। खासकर नवरात्रि में, जब पूरे देश में देवी दुर्गा की पूजा होती है, तो काली माँ के रूप को भी श्रद्धा से पूजा जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में भक्त अलग-अलग रूपों में देवी की पूजा करते हैं और काली माँ के रूप को भी सम्मान दिया जाता है, क्योंकि वो भी देवी दुर्गा के ही एक रूप हैं।

इसके अलावा, महाशिवरात्रि भी एक और खास दिन है जब काली माँ की पूजा की जाती है, खासकर उन भक्तों के लिए जो शिव जी और काली माँ दोनों की पूजा करते हैं। इस दिन, काली माँ के उग्र और शांत रूप की पूजा की जाती है ताकि हर भक्त की जिंदगी में हर संकट दूर हो सके। तो अगर आप काली माँ की आराधना करना चाहते हो, तो ये दोनों मौके बेहद खास होते हैं।




निष्कर्ष

तो दोस्तों, काली माँ का शिव जी के ऊपर पैर रखकर खड़ा होना एक गहरे और बहुत ही खास संदेश को दर्शाता है। जब काली माँ का गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ गया, तब भगवान शिव ने खुद को उनके सामने समर्पित कर दिया, ताकि उनका क्रोध शांत हो सके। ये पूरी घटना हमें ये सिखाती है कि शक्ति को संतुलित और नियंत्रित करना कितना जरूरी है। शिव जी और काली माँ का रिश्ता सिर्फ पति-पत्नी का नहीं, बल्कि शक्ति और समर्पण का भी है, जो पूरे ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने के लिए बेहद अहम है।


तो दोस्तों, अगर आपके मन में इस कहानी से जुड़े और भी सवाल हैं, तो कमेंट में हमें जरूर बताएं। हम हमेशा आपके सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हैं!



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